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किस्सा कुर्सी का और असमंजस वोटर का…

खामोश दिल की सुगबुगाहट
खामोश दिल की सुगबुगाहट
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एक तरफ वो गठबंधन है जिसने अब तक मुखमंत्री तक डिक्लेयर नहीं किया है, जीत जाने के बाद आपस में ही मार काट मचने वाली है… बिना अच्छे नेतृत्व के बिहार को चलाना और आगे बढ़ाना, भैंस के ऊपर गीत गाने जैसा है… केवल मोदी के हवाई जुमलों के नाम पर यहाँ वोटर उनको वोट दे देगा ऐसी गलतफहमी तो उनको नहीं ही पालनी चाहिए…. महा प्रधान खुले आम अपनी जाति बघारते हुये और आरक्षण बढ़ाने की बात कर रहे हैं, उस आरक्षण के लिए उनके हिसाब से वो अपनी जान की बाज़ी लगा देंगे, हालांकि जाति प्रथा के ऊपर एक लाइन भी कहीं बोलते नहीं दिखे… ज़ाहिर हैं उनको जाति प्रथा बनाए रखनी है तभी तो आरक्षण की रोटी सिकेगी…

दूसरी तरफ महागठबंधन है, जिसके साथ ऐसे लोग खड़े हैं जिनका भूतकाल खंगाला जाये तो आपके दिमाग का बफर खत्म हो जाएगा लेकिन काले कारनामे खत्म नहीं होंगे… व्यापारी और शिक्षित वर्ग वो #गुंडाराज अब तक नहीं भूला होगा…

कई लोगों का कहना है मुख्यमंत्री तो नितीश होने हैं फिर क्या तकलीफ है, तकलीफ ये हैं कि नितीश कितना भी अच्छा बोलते हों(करते भी हों) लेकिन दोनों जेब में दो छुरी लेकर वोट मांगने आए हैं….

परेशानी ये भी है कि कोई भी बिहार का विकास नहीं करना चाहता, उनको पता है जैसे जैसे यहाँ के लोगों को बाकी दुनिया की पटरी से जोड़ने लगेंगे, यहाँ उनकी जाति वाली राजनीति दम तोड़ने लगेगी… इतना तो निश्चित है 80 प्रतिशत वोट तो इस बार भी जाति के आधार पर ही पड़ेंगे…

बिहार से जुड़े हजारों मुद्दों को छोडकर आजकल तंत्र-मंत्र-ज्योतिष पर जुमले फेकने का दौर है, जैसे हमारे पास और कुछ नहीं बचा हो बात करने को…

बिहार का वोटर असमंजस में है… पिछली कई सालों से लालू को एक सिरे से हटाने के कोशिश करने वाली भीड़ इस बार लालू(महागठबंधन) को ही वोट करेगी….

इन सब असमंजस से अलग मैं जा रहा हूँ कल वोट देने, जो भी मेरी नज़र में सबसे अच्छा और शिक्षित उम्मीदवार है चाहे वो निर्दलीय ही क्यूँ न हो… वोट तो डालना ही पड़ेगा, कीमती है मेरा वोट…

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